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सोचता हूं...
कागजों पर बात लिखकर क्यों
मैने इन्हें छोड़े हैं
कहता क्यों नहीं खुद से मै
क्यों ये निंदे तोड़ी है
खोया खुदसे में पर
यह यादें क्यों यह पूरी है ?
मन का ये मिराज है या ?
या ये तुझमें भटकता है?
बैठ कर सोचूं सवाल कितने
जिनके जवाब न तेरे पास न मेरे पास
खुदा भी रूठ के बैठा तेरी तरह
दावा तो होगी भूलने को तुझे
इंताला कर देती जाने से पहले
हर इल्ज़ाम सर उठा ले जाता
इबादत से घिन आने लगी है खुदा से
तेरे इंतजार का इंतजार नही हो रहा अब मुझसे
© improvinglyincomplete
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