...

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चिंता के बादल....


चिंता की गहराई में खो जाता हूँ,
बार-बार सोचता हूँ, घिर जाता हूँ।
क्या होगा भविष्य, क्या होगा पल,
चिंता के बादलों में धुंधला दिखता हूँ।

बीते कल की यादों में उलझ जाता हूँ,
आने वाले कल की चिंता में भटक जाता हूँ।
विचारों के समुंदर में डूब जाता हूँ,
अपनी ही सिरहाने में बिस्तर सजाता हूँ।

पर कभी-कभी ये चिंता एक साथ ले जाती,
अच्छे-बुरे की परवाह किए बिना छोड़ जाती।
जब सोचता हूँ की खुशियों का क्या होगा पता,
तब चिंता का अंधेरा धीरे-धीरे हो जाता।

फिर आती है एक आशा की किरण,
चिंता की घनी घटाएं होती हैं कम।
आखिरी फूल बांध कर विश्वास करता हूँ,
चिंता को हराकर स्वतंत्र होता हूँ।
© dil ki kalam se.. "paalu"