"हे! मेरे फुलवारी की तितली"
सम्भल जा, सम्भल जा हे! फुलवारी की तितली।
डगमगा ना तू इधर - उधर।
रंग- बिरंगे पंख है तेरे, होठों की मुस्कान लेकर कहा चली,
तेरे इंतज़ार में बैठा हूं यहां, माली बनकर।
अब तो रात सुहानी हो गई है, तुझसे बाते करने को,
तुझसे दिल लगाने की अभिलाषा है मुझे।
तू छोड़ दे उस फूल को, जिस सुगंध के लिए तू जाती है,
तुझसे प्रेम हुआ है, मस्तानी चाल देखकर मुझे।
तेरे बदन के रोशनी...
डगमगा ना तू इधर - उधर।
रंग- बिरंगे पंख है तेरे, होठों की मुस्कान लेकर कहा चली,
तेरे इंतज़ार में बैठा हूं यहां, माली बनकर।
अब तो रात सुहानी हो गई है, तुझसे बाते करने को,
तुझसे दिल लगाने की अभिलाषा है मुझे।
तू छोड़ दे उस फूल को, जिस सुगंध के लिए तू जाती है,
तुझसे प्रेम हुआ है, मस्तानी चाल देखकर मुझे।
तेरे बदन के रोशनी...