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जिस्म से रूह तक हूं तेरी पनाह में (गजल)❤️
जब होती है परवरिश मोहब्बत की
दिल-ए-गाह में,
,,,,,
,,,,,
बाखुदा, नूर-ए-नूर नज़र आता है
उस निगाह में,
,,,,,
,,,,,
तेरे हर इक़ से मैं होने का एहसास है
या रब,
,,,,,
,,,,,
जिस्म से रूह तक़ हू तेरी पनाह में,
,,,,,
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दिल-ए-शितम की और कह्ता है दीवाना
क्या खूब मज़ा है इश्क़ की
आह मे,
,,,,,
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माना कि ज़माने को फुर्शत बहुत है
लेकिन
दिलों को चैन कहां है इस राह में..
This poem is dedicated to my love @prashu92 ❤️
© kritika_writes
दिल-ए-गाह में,
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बाखुदा, नूर-ए-नूर नज़र आता है
उस निगाह में,
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तेरे हर इक़ से मैं होने का एहसास है
या रब,
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जिस्म से रूह तक़ हू तेरी पनाह में,
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दिल-ए-शितम की और कह्ता है दीवाना
क्या खूब मज़ा है इश्क़ की
आह मे,
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माना कि ज़माने को फुर्शत बहुत है
लेकिन
दिलों को चैन कहां है इस राह में..
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