...

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अल्फ़ाज़
बड़े सितमगर् हो जाना मेरी मसरूफियत नहीं समझते
अल्फ़ाज़ तो समझ लेते हो जज़्बात नहीं समझते

ये दिल ये जान ये रूह ये जिस्म सब तुम्हारा
गैरों की बात सुनते हो मेरी वफा नहीं समझते

मैंने छोड़ दिया वो शहर जहाँ तेरी खुश्बू तक ना हो
हम आशिक मिजाज़ है मेरी दिवानगी नहीं समझते

बड़ी आसानी से कहते हो भूल जाना हमे
दिल्लगी तो करते हो, पर इबादत नहीं समझते

तेरी यादों का खून रिसता है मेरी हर एक नज़्म मे
बड़े बेदर्द हो वाह वाह कहते हो, पर मेरा दर्द नहीं समझते।



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