...

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आधी अधुरी बातें
आधी अधुरी बातें कब तक यूं ही लिखता रहूं
कोरे काग़ज़ ने भी स्याही का रंग फीका कर दिया है।

शब्दों ने भी बगावत का रास्ता अख्तियार कर के
मेरी क़लम का रूख बदल कर अंदाज कुंद कर दिया है।

क्या लिखुं की ऐसा कुछ लिखा जाए जो याद रहे
मेरे शब्दों के सागर को समेट कर तालाब कर दिया है।

फटे हुए अखबार में छपी हुई इबारत बन गया हूं मैं
हर हिसाब समेटकर आधे अधूरे को बेहिसाब कर दिया है।

एक एक पल को जीने की आश लिए तुमसे मिलना है
आधी अधुरी बातों को शुरू करके इज़हार कर दिया है।
© M.S.Suthar