...

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बहार आने से पहले ' ।
रात दिन बस तेरी याद आती है ।
तन्हाई में अक्सर निगाह नम हो जाती है

ऐसा क्या गुनाह किया हमने जिन्दगी में
बहारआने से पहले पतझड़ छा जाती है

जिसको को अपना कहते रहे ताउम्र ।
गैर जैसे उसकी फितरत बदल जाती है ।

लोग कहते है जमाना खराब है "शकुन "
लोगो की औकाद ये समझा जाती है

अब तो रिश्तो में भी नफा देखा जाता है
दिलो की धौलत धुल में मिल जाती है ॥

किसी को अपना कहने से डरने लगे हम
अपने की तलाश में उम्र बीत जाती है ॥

जख्म जो नासूर बन गये अब क्या भरेगे
जिन्दगी यही बात हमे समझा जाती है ॥




© shakuntala sharma