...

12 views

दर्द मेरा बिकता रहा
दर्द कागज़ पर,
मेरा बिकता रहा,

मैं बैचैन था,
रातभर लिखता रहा..

छू रहे थे सब,
बुलंदियाँ आसमान की,

मैं सितारों के बीच,
चाँद की तरह छिपता रहा..

अकड होती तो,
कब का टूट गया होता,

मैं था नाज़ुक डाली,
जो सबके आगे झुकता रहा..

बदले यहाँ...