...

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क्या मैं अब भी तुम्हारे जहान में हूं
वो दौर भी क्या दौड़ था, जब तुम मुझसे बात किया करती थी
एक चमक सी आ जाती थी तुम्हारी आंखों में,
भोर की सी लालिमा तुम्हारे गालों पर सज जाया करती थी।
बातों की तो क्या बात करे बिन सर पैर की बाते खुद को सुंदर कहानियों में गढ़ जाति थी।
जरा सी रस्मों खैरियत की बात न जाने कब घंटो की बन जाती थी।
वक्त मानो अठकेहलिया लेता हो हमारी नादानी पर,
ना जाने क्यों इतनी जल्दी बीत जाया करती थी,
वो दौर भी क्या दौर था, जब तुम मुझसे बात किया करती थी।।


मैं अब भी तो वही हूं फिर क्यों तुम मुझसे अब बात नहीं करती,
मेरी बातो का अब तुम जवाब क्यों नहीं देती,
क्या मुझमें अब वो बात नहीं या तुम्हारे बदन में अब सांस नहीं चलती,
क्या आसमान में अब इंद्रधनुष नहीं बनते या
नदिया अब पर्वतों से नहीं बहती,
क्या तुम्हे कोई और मिल गया है, या तुम्हे अब मुझपर भरोसा नहीं है,
तुम्हे पता भी...