इन आँखों को बयां मैं करूं कैसे
इन आँखों को बयाँ लफ़्ज़ों में कैसे करूँ,
यह तो ख़्वाबों की ज़ुबाँ हैं, मैं तर्जुमा कैसे करूँ।
चमकती हैं कभी चाँदनी की तरह रातों में,
कभी सूरज सा सुलगती हैं...
यह तो ख़्वाबों की ज़ुबाँ हैं, मैं तर्जुमा कैसे करूँ।
चमकती हैं कभी चाँदनी की तरह रातों में,
कभी सूरज सा सुलगती हैं...