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कद्र करलो जीते जी
"कद्र" करनी है तो "जीते जी करे"
"मरने के बाद" तो पराए भी रो देते हैं
आज "जिस्म" में जान है तो
देखते नहीं है लोग
जब "रूह" निकल जाएगी तो
कफन हटा हटा कर देखेंगे
किसी ने क्या "खूब" लिखा है
"वक़्त" निकालकर
"बात" कर लिया करो "अपनो से"
अगर अपने ही न रहेंगे
तो "वक़्त" का क्या करोगे
गुरूर किस बात का है "साहब"
आज "मिट्टी" के ऊपर
तो कल "मिट्टी" के नीचे.
"मरने के बाद" तो पराए भी रो देते हैं
आज "जिस्म" में जान है तो
देखते नहीं है लोग
जब "रूह" निकल जाएगी तो
कफन हटा हटा कर देखेंगे
किसी ने क्या "खूब" लिखा है
"वक़्त" निकालकर
"बात" कर लिया करो "अपनो से"
अगर अपने ही न रहेंगे
तो "वक़्त" का क्या करोगे
गुरूर किस बात का है "साहब"
आज "मिट्टी" के ऊपर
तो कल "मिट्टी" के नीचे.
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