मन की व्यथा (माता-पिता की वेदना पर लिखी कविता)
छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ा
सुलगते सुलगते जलाता है तन को |
समझा था जीवन की ज्योति सा बनकर,
बनेगा सहारा बुढ़ापा तिमिर में |
कट जाएगा अवशेष जीवन कठिन पल
पलकों का सपना सजाया था दिल में |
कहूं दोष खुद का या कोसूं मुकद्दर,
बना आज जीवन कुम्हलाता नीरज |
दीपक समझकर संभाला था जिसको,
जलाया मुझे बन दुपहरी का सूरज |
बताऊं कैसे व्यथा अपने मन की ,
बिठाऊं कहां से कहां अपनेपन को |
छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ा
सुलगते सुलगते जलाता है तन को |
कर त्याग केंचुल सा जननी की ममता,
गया बन निर्मम किस सपने में खोये |
न बन बेखबर हो सजग मेरे प्यारे,
गया टूट बन्धन तो फिर जुड़ न पाये |
किया क्या न पूजा दुआ तेरे खातिर,
कर दी आहूति खुद के सपने सजोये |
बस तू ही था सच्चे सपने निराले,
हम रखे सदा तुझको दिल से लगाये |
सदा सोचता कि भूल जाऊं किये को,
भीगी आंख से देखता हूं गगन को |
छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ा
सुलगते सुलगते जलाता है तन को |
अभिशाप बन न तू इकलौता औलाद ,
क्यों बन...
सुलगते सुलगते जलाता है तन को |
समझा था जीवन की ज्योति सा बनकर,
बनेगा सहारा बुढ़ापा तिमिर में |
कट जाएगा अवशेष जीवन कठिन पल
पलकों का सपना सजाया था दिल में |
कहूं दोष खुद का या कोसूं मुकद्दर,
बना आज जीवन कुम्हलाता नीरज |
दीपक समझकर संभाला था जिसको,
जलाया मुझे बन दुपहरी का सूरज |
बताऊं कैसे व्यथा अपने मन की ,
बिठाऊं कहां से कहां अपनेपन को |
छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ा
सुलगते सुलगते जलाता है तन को |
कर त्याग केंचुल सा जननी की ममता,
गया बन निर्मम किस सपने में खोये |
न बन बेखबर हो सजग मेरे प्यारे,
गया टूट बन्धन तो फिर जुड़ न पाये |
किया क्या न पूजा दुआ तेरे खातिर,
कर दी आहूति खुद के सपने सजोये |
बस तू ही था सच्चे सपने निराले,
हम रखे सदा तुझको दिल से लगाये |
सदा सोचता कि भूल जाऊं किये को,
भीगी आंख से देखता हूं गगन को |
छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ा
सुलगते सुलगते जलाता है तन को |
अभिशाप बन न तू इकलौता औलाद ,
क्यों बन...