सावन
तेरी राह तक रहे थे,
बना काग़ज़ की कश्तियां,
ऐसा बरसा काल सा,
लील गया उनकी बस्तियां,
न मोर नाचे, न मेघ उमड़े,
बस अंबर टूटा, गांव उजड़े,
निवेदन प्रणय का था,
प्रलय दिखा रहा है,
गिरतीं थीं बूंदें रिमझिम,
बर्बादी गिरा रहा है,
बहते थे झरने कल कल,
घरौंदे बहा रहा है,
अबके बरस ये सावन,
क्यों डरा रहा है।
- राजेश वर्मा
© All Rights Reserved
बना काग़ज़ की कश्तियां,
ऐसा बरसा काल सा,
लील गया उनकी बस्तियां,
न मोर नाचे, न मेघ उमड़े,
बस अंबर टूटा, गांव उजड़े,
निवेदन प्रणय का था,
प्रलय दिखा रहा है,
गिरतीं थीं बूंदें रिमझिम,
बर्बादी गिरा रहा है,
बहते थे झरने कल कल,
घरौंदे बहा रहा है,
अबके बरस ये सावन,
क्यों डरा रहा है।
- राजेश वर्मा
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