सावन
तेरी राह तक रहे थे,
बना काग़ज़ की कश्तियां,
ऐसा बरसा काल सा,
लील गया उनकी बस्तियां,
न मोर नाचे, न मेघ उमड़े,
बस अंबर टूटा, गांव...
बना काग़ज़ की कश्तियां,
ऐसा बरसा काल सा,
लील गया उनकी बस्तियां,
न मोर नाचे, न मेघ उमड़े,
बस अंबर टूटा, गांव...