(खुशी नाराज़ है )
इतने दिन गुजर गए
तुमने मुझे महसूस नहीं किया
हर पल चाहत तो करती हो मेरी पर,
ग़म से नाता गहरा बना लिया क्या
आज उस खुशी मे सिमटे एहसास नाराज़ है ।
आज वो खिलौना नाराज़ है जिससे बचपन में खेला था मैंने ,
पर आज वो घर के कोने मे पड़ा कहीं धूल खा रहा है
खिलौनों मे छुपा , वो बचपन नाराज़ है ।
ड्रावेल में पड़ी पायल जिसे खरीदा था तुमने
उस दुकान से पर पहना नहीं कभी
गहनों से दुश्मनी हो गई क्या, वो घुगरुओं की झंकार नाराज़ है ।
मैं चाँद दोस्त हुआ करता था तुम्हरा कई दिन गुज़र गए तुमने देखा नहीं मुझे, उस चाँद की चाँदनी नाराज़ है
मंदिर की सीढ़ियां तकती है रास्ता तुम्हरा ,भगवान से खफ़ा हो क्या श्रद्धा की आरती नाराज़ है |
अधूरे अफ़साने को पूरा नहीं किया यूँ ही छोड़ दिया किस्मत पर, वो अधूरी कहनी नाराज़ है
वो डायरी जिस पर लिखे बिना तुम्हारा दिन ना गुजरता था उसके खाली पन्ने नाराज़ है ।
कुछ पुरानी तस्वीरें बेजान पड़ी हैं किसी को फुरसत नहीं की एक बार देख सके,
जानदार लोगों को कैद किया है जिसने आज वो बेजान शीशे नाराज़ है ।
वो चित्र जो बनाया था बड़े शौक से ध्यान नहीं दिया तो रंगों ने भी अपने रंग बदल दिया आज वो उदास चित्रकारी नाराज़ है |
- पूजा चौहान
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