...

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रूह
मैं काया के पार हूँ
मेरा सिरा अथाह है
लालसाओं की लहर
कदम रोकेगी उभारों से
कूद पाओगे तुम ?

माँसाहारी है मछलियाँ
निगल कर
खींच ले जायेगी तुम्हें
रसातल तक
छूट पाओगे तुम?

निराश ना होना
मैं भी हूँ प्रतीक्षारत
विश्वास रखो
किसी न किसी दिन
देह के पार
चले आओगे तुम
© Ninad