maat pucho maine kya kya dekha
मत पूछो के मैंने क्या क्या देखा
बनती बिगड़ती हुई सरकार का तमाशा देखा
मैंने बिकते हुए लोह ओ कलम देखा
इज़ाज बेटियों के सड़कों पे नीलाम देखा
इंसानियत को होते हुए शर्मसार देखा
मत पूछो के मैंने क्या क्या देखा
एक तरफ शराब में डूबी हुई शाम देखा
दुसरी तरफ रातों को कई फ़ाका देखा
शियासी लोग की मैंने शियासत देखा
धर्म के नाम पे फिर कितने ही आफत देखा
मत पूछो के मैंने क्या क्या...
बनती बिगड़ती हुई सरकार का तमाशा देखा
मैंने बिकते हुए लोह ओ कलम देखा
इज़ाज बेटियों के सड़कों पे नीलाम देखा
इंसानियत को होते हुए शर्मसार देखा
मत पूछो के मैंने क्या क्या देखा
एक तरफ शराब में डूबी हुई शाम देखा
दुसरी तरफ रातों को कई फ़ाका देखा
शियासी लोग की मैंने शियासत देखा
धर्म के नाम पे फिर कितने ही आफत देखा
मत पूछो के मैंने क्या क्या...