...

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जीवन यात्रा...!
फिर एक नया पन्ना...
सब की देहरियों पर छोड़ देता है सवेरा
अनंत तक की यात्राओं को
पूर्ण किए जाने के लिए...

जैसे जिद्दी बालकों को
माएं थमा देती हैं
कोई रोजगार...
ताकि वे उस के कार्यों में
विध्न न डालें...!!

सुनो... मनुज,तुम स्वयं ही
स्वयं के जीवन रचयिता हो...
रोज़ लिखते हो कर्म और
उम्र के हिसाब़...

रोज़ करते हो छोटी-छोटी
यात्राएं...
उस शून्य में
विलीन हो जाने के लिए...