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PHIR VAHI ZINDAGI HAMARI HAI
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फिर कुछ इस दिल् को बेक़रारी है
सीना ज़ोया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है

फिर जिगर खोदने लगा नाख़ून
आमद-ए-फ़स्ल-ए-लालाकारी है

क़िब्ला-ए-मक़्सद-ए-निगाह-ए-नियाज़
फिर वही पर्दा-ए-अम्मारी है
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