...

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चांद और मैं
2122 2122 212
चांद मेरा हमसफ़र हो ना सका
इंतेहा कोशिश मनाने की रही

रात भर छुपता निकलता वो रहा
ख़ूब साजिश यूं जगाने की रही

मैं तो शब भर साथ तारों के रहा
ना ख़बर कोई ठिकाने की रही

इक अजब सा खेल यूं खेला गया
होश ना मेरे फसाने की रही

उम्र भर चालाकियां मुझ से हुई
ना समझ मुझ को ज़माने की रही

© अमरीश अग्रवाल "मासूम"