13 views
चांद और मैं
2122 2122 212
चांद मेरा हमसफ़र हो ना सका
इंतेहा कोशिश मनाने की रही
रात भर छुपता निकलता वो रहा
ख़ूब साजिश यूं जगाने की रही
मैं तो शब भर साथ तारों के रहा
ना ख़बर कोई ठिकाने की रही
इक अजब सा खेल यूं खेला गया
होश ना मेरे फसाने की रही
उम्र भर चालाकियां मुझ से हुई
ना समझ मुझ को ज़माने की रही
© अमरीश अग्रवाल "मासूम"
चांद मेरा हमसफ़र हो ना सका
इंतेहा कोशिश मनाने की रही
रात भर छुपता निकलता वो रहा
ख़ूब साजिश यूं जगाने की रही
मैं तो शब भर साथ तारों के रहा
ना ख़बर कोई ठिकाने की रही
इक अजब सा खेल यूं खेला गया
होश ना मेरे फसाने की रही
उम्र भर चालाकियां मुझ से हुई
ना समझ मुझ को ज़माने की रही
© अमरीश अग्रवाल "मासूम"
Related Stories
29 Likes
10
Comments
29 Likes
10
Comments