...

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“कौन यहां रुकना चाहता है”
कौन यहां रहना चाहता है
कौन यहां सहना चाहता है
सब के हैं गम अपने अपने
इस गम के साथ कौन जीना चाहता है

ज़िंदगी लेती है इम्तेहान कई
लाती है जीवन में मेहमान कई
मिलते हैं बिछड़ते हैं हर बार
कौन मिलकर बिछड़ना चाहता है

न कोई किसी की खुशियां देख पाता है
न कोई किसी को हंसाना चाहता है
बेमतलब सी दुनिया में सिर्फ़
हर कोई यहां रुलाना चाहता है

कौन भला गमों को समेट पाता है
कुछ न कुछ सबसे छूट जाता है
हम साथ हैं का दिखावा करके
हर कोई हमदर्दी जताना चाहता है

कोई आता है दिल में इस क़दर
अपना आशियां बना चला जाता है
आती जाती इस जिंदगानी में
कौन यहां रुकना चाहता है

© ढलती_साँझ