आईना
ज़िन्दगी से बडी़ सज़ा ही नहीं,
और क्या जुर्म है पता ही नहीं
सच घटे या बढे़ तो सच न रहे,
झूठ की कोई इंतहा ही नहीं,
चाहे सोने के फ़्रेम मे जड़ दो आइना,
आईना झूठ बोलता ही नहीं!!
और क्या जुर्म है पता ही नहीं
सच घटे या बढे़ तो सच न रहे,
झूठ की कोई इंतहा ही नहीं,
चाहे सोने के फ़्रेम मे जड़ दो आइना,
आईना झूठ बोलता ही नहीं!!
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