...

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आख़िर कब तक??
मेरे खाली कमरे में, मैं और मेरे ख़्वाब, बातें करते हैं...
काश ये होता कि मैं होता कहीं खुद के लिए!
काश ये होता कि ये काश ना होता कहीं!
सिर्फ़ मैं और मेरे सपने होते,
जिनके लिए मैं लड़ता जाता, बिना किसी परवाह के;
बिना किसी डर के कि हारूंगा तो क्या होगा?
काश मैं जा सकता उन मंजिलों की तरफ़!
जो मैंने बुनी थी खुद के लिए...
काश इतना आसान होता उन राहों पे दौड़ते चले जाना!
जिनपे तुम पूरी ज़िंदगी बिना थके दौड़ सकते हो...
काश हमने हमारे लिए ज़िंदगी इतनी मुश्किल ना कि होती!
तो शायद हम बेहतर होते!!
ये असमान को छूती इमारतें जिनमे रहते लोग,...