...

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नज़र
नज़र मिली जब राहों में हम से
न जाने वो क्यों शरमा गए
बिखेर कर वो ख़ुशबू फ़िज़ा में
चमन हमारा महका गए
बज उठे ऐसे तार इस दिल के
खिल गए सहरा में भी जैसे गुलशन
नज़र मिली...

हमें ये डर था पहले कि बात ना बिगड़ जाए
क़रीब जाना चाहा मगर क़दम न बढ़ पाए
सोचते थे ये ज़िंदगी सारी
बीत जाए ना यूॅं ही तनहाई में
नज़र मिली...

हमारे पहलू में आ गए वो एक दिन चलकर
हुआ अजूबा पल में यहाॅं बदल गया मंज़र
हम न कर पाए थे यक़ीं ख़ुद पर
चल गया आख़िर जाने कैसा जादू
नज़र मिली...

कभी न ये सोचा था कि वो क़रीब आएंगे
हुज़ूर अपने दिल में कभी हमें बिठाएंगे
आज हाथों में हाथ है उन का
क्या सुनाएं लफ्ज़ो में दिल का आलम
नज़र मिली...
©charudatta_kelkar

© ©charudatta_kelkar