मनबढ़ मन
किसी के ख्यालों में घिर
बार बार उसका ही जिक्र
आफ़त नही तो क्या है
हद से ज्यादा किसी की फिक्र
समय की जेब से बचत समय की
उपहार में औरों से चुरा देना समय
कमबख्त निशा मोहब्बत की
मोहब्बत से होना मोहब्बत की
बढ़ता प्रेम उलझता मन
अनगिनत ख्वाबों का सफ़र
मोहब्बत की पगडंडी पे चल
मोहब्बत से हारे ख़ुद को हम
आशा के बाद निराशा की किरण
भय मुक्त जीवन कल्पनारत
है यही व्यथा हृदय की
पाने के बाद खोने का गम