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बंधेज
देखता हूं कि एक गहरी पीर छुपी है बंधेज में
दबे रहने की ख़ामोश टीस है छुपी है बंधेज में..
अपने, अपनों के बीच, अपनों को दबा देते है
एक रंग निखारने के लिए दूजे को छुपा देते हैं..
भूलते हैं कि रंग निखरेगा उसकी मौजूदगी से
खिले रंग का वजूद है, दबे रंग के वजूद ही से..
इस खिलते रंग को, अपने पर कितना मान है
दबा हुआ रंग कितना खामोश और बेगुमान है..
उभरा हुआ रंग और निखरता है, वाहा वाही से
दबा हुआ अनदेखा किया जाता है लापरवाही से..
देखता हूँ किसी बंधेज सा लगता है ये समाज भी
किसको फ़िक्र है, जो दबे थे, वो दबे हैं आज भी..
जमाना भी उन्हें सलाम करता है, जो चमकते हैं
जाने बुलंदी के लिए, कितने कंधों पे पैर रखते हैं..
© Naveen Saraswat
दबे रहने की ख़ामोश टीस है छुपी है बंधेज में..
अपने, अपनों के बीच, अपनों को दबा देते है
एक रंग निखारने के लिए दूजे को छुपा देते हैं..
भूलते हैं कि रंग निखरेगा उसकी मौजूदगी से
खिले रंग का वजूद है, दबे रंग के वजूद ही से..
इस खिलते रंग को, अपने पर कितना मान है
दबा हुआ रंग कितना खामोश और बेगुमान है..
उभरा हुआ रंग और निखरता है, वाहा वाही से
दबा हुआ अनदेखा किया जाता है लापरवाही से..
देखता हूँ किसी बंधेज सा लगता है ये समाज भी
किसको फ़िक्र है, जो दबे थे, वो दबे हैं आज भी..
जमाना भी उन्हें सलाम करता है, जो चमकते हैं
जाने बुलंदी के लिए, कितने कंधों पे पैर रखते हैं..
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