...

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बेखबर हम नहीं
लफ़्ज़ हर एक तेरे, गुल ए गुलजार है ।
तु है तो ये हुस्न है, और ये मेरा बहार है ।
गुलशन गुलशन खिले है फूल, उम्मीदें हजार है ,
ना जाने कैसा चढ़ा हमपे, ये तुम्हारा खुमार है ।

कहते हो, कमसिन मेरी अदा पे, तुम्हारा ऐतबार है ।
बिखरे मेरे कण कण पे तेरा, पूरा अब अख्तियार है ।
न जाने कौनसे वक्त हुई, हमारी ये मुलाकात है ?
देखो वो घड़ी भी अब, मिलने बड़ी बेकरार है ।

सुना है इस चौखट पर अब, तुम तो आते ही नहीं,
'हुस्न' की किसी 'और' अदा पे, शीश भी नवातें नहीं ।
हमें तो चैन आता है, तेरे ही दीदार से..!
इस कदर दीदार को, किसीको तरसाते नहीं ।

माना की तेरा प्यार है, बंदगी तेरे लिए,
लेकिन दीदार ए यार है, ज़िंदगी मेरे लिए।
कर दिया नजरों से दूर, तूने जरासा है हमें ...!
तेरे लिए बेखबर तो, देखो फिर भी हम नहीं ।
© Devideep3612