...

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मैं कौन हूं?
ये वतन है मेरा और उसका, सब पंथों का है ये आगाज़,
जिसका बैरी बन बैठा, उसके मजहब का मुल्क सिरताज़,
वो सोच रहा किसका साथ दूं? उसका जिसकी मैं कौम हूं?
या हूं मैं अपने वतन का बेटा? आख़िर मैं कौन हूं?

हर धर्म में दुश्मनी भरी, मज़हब से मज़हब टकराता,
ग़र गुनहगार कौम मेरी, फिर भी बैरी पर झूठ बरसाता,
साथ दूं शत्रु का या अपनों का? अब भी क्यों मैं मौन हूं?
हूं मैं मज़हबी या इंसान? आख़िर मैं कौन हूं?

मेरा वतन जा रहा गलत राह, इंसानियत से लड़ रहा,
अपने बेटे को नज़रंदाज़ कर, उसी से है झगड़ रहा,
अपने मुल्क को सही राह दिखाऊं? या लड़ूं कहकर मैं इंसानियत की मोम हूं?
हूं मैं इंसान या अपने मुल्क का?कोई तो बताओ की आखिर मैं कौन हूं?

© Utkarsh Ahuja