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papa
सहकर हर पल दर्द वो, अपने जख्मो को छुपाता रहा
उसे खुदा कहु या फरिश्ता कोई, जो खुद को आम बताता रहा
कहकर अपनी परी मुझे वो, मेरी जिन्दगी को जन्नत बनाता रहा
उसे खुदा कहु या फरिश्ता कोई, जो खुद को आम बताता रहा
थके हुए कन्धो पर हर रोज बिठाकर मुझे वो, जमाने की शेर कराता रहा
उसे खुदा कहु या फरिश्ता कोई, जो खुद को आम बताता रहा
देकर अपनी बेटी की विदाई मे सबकुछ, वो फिर भी कमी बताता रहा
उसे खुदा कहु या फरिश्ता कोई, जो खुद को आम बताता रहा
हिम्मत भला कहा थी उसमे खुद को मुझसे जुदा करने की,
वो बन्द कमरे मे आसु बहाता रहा
उसे खुदा कहु या फरिश्ता कोई, जो खुद को आम बताता रहा
© miraan ruth
उसे खुदा कहु या फरिश्ता कोई, जो खुद को आम बताता रहा
कहकर अपनी परी मुझे वो, मेरी जिन्दगी को जन्नत बनाता रहा
उसे खुदा कहु या फरिश्ता कोई, जो खुद को आम बताता रहा
थके हुए कन्धो पर हर रोज बिठाकर मुझे वो, जमाने की शेर कराता रहा
उसे खुदा कहु या फरिश्ता कोई, जो खुद को आम बताता रहा
देकर अपनी बेटी की विदाई मे सबकुछ, वो फिर भी कमी बताता रहा
उसे खुदा कहु या फरिश्ता कोई, जो खुद को आम बताता रहा
हिम्मत भला कहा थी उसमे खुद को मुझसे जुदा करने की,
वो बन्द कमरे मे आसु बहाता रहा
उसे खुदा कहु या फरिश्ता कोई, जो खुद को आम बताता रहा
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