...

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" प्रेम गगरिया "
प्रेम गगरिया छलकत जाए
पग पग प्रेम छलकत जाए
सुबासित है वन उपवन में
छाए हुए हैं प्रेम के बादल
मंडरा रहे हैं नीले अंबर में
नैनों से छलक रही है सोमरस
की फुहार,
मादकता बढ़ती जाए फ़ूल सी
मदमस्त जवानी छलकत जाए
प्रेम गगरिया छलकत जाए।
रेशम से हैं केश तुम्हारे
पवन के झोके से सरकत जाए
जैसे छाए घनघोर बारिश
तन मन भीगा भीगा जाए
रूप की अनुपम छवि है
चारों तरफ़ फैली सनसनी है
कटि...