...

10 views

" प्रेम गगरिया "
प्रेम गगरिया छलकत जाए
पग पग प्रेम छलकत जाए
सुबासित है वन उपवन में
छाए हुए हैं प्रेम के बादल
मंडरा रहे हैं नीले अंबर में
नैनों से छलक रही है सोमरस
की फुहार,
मादकता बढ़ती जाए फ़ूल सी
मदमस्त जवानी छलकत जाए
प्रेम गगरिया छलकत जाए।
रेशम से हैं केश तुम्हारे
पवन के झोके से सरकत जाए
जैसे छाए घनघोर बारिश
तन मन भीगा भीगा जाए
रूप की अनुपम छवि है
चारों तरफ़ फैली सनसनी है
कटि तुम्हारी लचकती जाए
जैसे कुंज की नाज़ुक लताएं
सुबह की शबनम फिसलत जाए।
सुर नर मुनि सब प्रेम में डूबे हुए हैं
सुर भी तेरे सौंदर्य उपासक हैं
नर की दशा भी आतुर हो रही है
तेरे रूप को देख कर
मुनि अपनी तपस्या भूल जाए
चंचल चितवन होंठ रसीले
नयन नक्श हैं तेरे नीले नीले।
प्रेम गगरिया छलकत जाए
इस वसुधा में कीर्ति है तेरी
अप्सराएं भी तेरी रूप साधना में
लीन रहतीं हैं
यौवन रस पुष्प पराग कण कण में
सिंचित हैं।
प्रेम इक आत्मिक आस्वादन है
मन की तिष्णा नहीं है
प्रेम तन का भूख नहीं है
प्रेम जगत का सार है
प्रेम गगरिया छलकत जाए
प्रेम ही प्रेम को बढ़ाए।

'Gautam Hritu'






© All Rights Reserved