चिट्ठियां ✍️
तुम्हें लिखी सारी चिट्ठियां
जो तुम्हारे पते तक
पहुंच न पाई
वो इंतजार कर रही है तुम्हारा
कभी कभी संदूक की छेद से
झांकने लगती हैं
राह तकती है तुम्हारा
और इंतजार करते करते
कई चिट्ठियां तो
दरवाज़े की चौखट
लाँघने लगती है
वो कर लेती हैं
विद्रोह इंतजार से...
जो तुम्हारे पते तक
पहुंच न पाई
वो इंतजार कर रही है तुम्हारा
कभी कभी संदूक की छेद से
झांकने लगती हैं
राह तकती है तुम्हारा
और इंतजार करते करते
कई चिट्ठियां तो
दरवाज़े की चौखट
लाँघने लगती है
वो कर लेती हैं
विद्रोह इंतजार से...