...

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अलविदा
तुम तो हमेशा साथ निभाने वाले थे
फ़िर क्यूं अलविदा कह चले
एक बार सोचा तक नहीं
कैसे जीयेंगे हम तुम्हारे बग़ैर
क्या गुज़रेगी हमपर
ख़ुद तो जा चुके हो
फ़िर क्यूं तुम्हारी यादें सताती है
हमें नहीं पता हाल तुम्हारा
पर यहां दर्द गरजतें हैं बादलों की तरहा
अश्क बरसते हैं बारिशों की तरहा
जो मानो दिल की जमीं से कबकी
बिछड़ी होने के बरसों बाद मिली हो
लोग तो जुदा हो जाते हैं
पर रूह,रूह को कौन अलग कर सकता है
जो साथ में बंध चुकी हों
बहौत तकलीफ़ में है ये दिल
तन्हाई का दलदल जाने कब तक
इसे फसाएं रखेगा
जीने को जी चाहता है
पर ये गम जीने कहां देते हैं
ये गम जीने कहां देते हैं

© rõõh