...

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ख़ामोश निगाहें
पढ़ सको ग़र मेरी ख़ामोश निगाहों की दास्तान,
हरेक हर्फ़ पे बेवफाई की रौशनाई नज़र आएगी।।

जाने कितने अश्क़ बेताब हैं ख़ामोशी से बह जाने को,
हर अश्क़ में तुम्हें अपनी ही परछाई नज़र आएगी।।

कभी मिल उसी बाज़ार में,जहाँ सौदे किए थे दिल के।
जफ़ा सस्ती, वफ़ा के मामले में महंगाई नज़र आएगी।

हमराह ना सही ,हम-फ़िगार ही बन जाते हैं चलो।
किसके ज़ख़्म में है कितनी, गहराई नज़र आएगी।।