जंगली पेड़
मैं बनना चाहता हूं वो जंगली पेड़।
जो उग उठता है विषम परिवेश में भी;
हो बरसात औसतन से ज्यादा,
धरा रह गई हो प्यासी बिन नीर के भी।
चले समीर ऐसी की पत्ता पत्ता उड़ जाए,
पर तूफानों में वो मंद श्वास लिए मुस्कराए।
ना मिले प्रेम भले ही माली के मातृत्व का,
हो प्रेम फीका भी सूर्य के पितृत्व का।
वो रखता है जीजिविषा जो मिला
उसका सहजता से आवलंबन किए,
देखो वो खड़ा वहां चट्टान की संकरी दरार में
खुद के अस्तित्व के प्रकाश को बिखेरे हुए।
मैं बनना चाहता हूं वो जंगली पेड़।
जब दामिनी चमकती होगी,
गज सा मेघ गरजता होगा।
वो जड़ पाश से धरा को मजबूती से जकड़ता...
जो उग उठता है विषम परिवेश में भी;
हो बरसात औसतन से ज्यादा,
धरा रह गई हो प्यासी बिन नीर के भी।
चले समीर ऐसी की पत्ता पत्ता उड़ जाए,
पर तूफानों में वो मंद श्वास लिए मुस्कराए।
ना मिले प्रेम भले ही माली के मातृत्व का,
हो प्रेम फीका भी सूर्य के पितृत्व का।
वो रखता है जीजिविषा जो मिला
उसका सहजता से आवलंबन किए,
देखो वो खड़ा वहां चट्टान की संकरी दरार में
खुद के अस्तित्व के प्रकाश को बिखेरे हुए।
मैं बनना चाहता हूं वो जंगली पेड़।
जब दामिनी चमकती होगी,
गज सा मेघ गरजता होगा।
वो जड़ पाश से धरा को मजबूती से जकड़ता...