...

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तलबगार

कभी तो ख़ावाब ऐसा आए,

जिस की तलबगार रुह हों,

असीम जहां में बसेरा हों ,

ना कोई सीमा हों,

कोई ना हो बंधन,

दिल से चाहने वाले हों,

मन में ना रखते ऐब हों,

हो जहां प्यारा सा बचपन,

ना मिले चमन में ग़ैर कोई....





© Hiren Brahmbhatt - HirSwa