...

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बोन्साई सा मन
और कितना काटोगे
अपनी शाख़ाओं को,
नित नई भावनाएँ
प्रस्फूटित होने लगे तो!
चलो ज़ड़ों को तो छोटा
कर ही दिया, ख़ुद को भी
छोटे से गमले में कैद कर लिया,
अगर कभी सूखने लगे
वज़ूद तुम्हारा, न सींचे माली जल,
झरने लगे नाममात्र के पात
तो फिर क्यों बनना चाहा तुमने
बोन्साई सा सजावटी जीवन ?