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सफ़र (१)
वो बचपन का जमाना था, ये बढ़ती उम्र का दौर है।
वो खुशियों का खजाना था,ये गमों का सैलाब है।
तब चाहत थी चांद को पाने की,ये समय है कुछ करके दिखाने का।
सर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम सुहाना था, ये वक्त वो है जहां खबर नहीं खुद के ठिकानों का।
वो राह था साथ चलने वालों का, ये राह है छलने वालों का।
वो जमाना हो गया पुराना, शुरू यह एक नया सफर है ।
© Shreya tiwari
वो खुशियों का खजाना था,ये गमों का सैलाब है।
तब चाहत थी चांद को पाने की,ये समय है कुछ करके दिखाने का।
सर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम सुहाना था, ये वक्त वो है जहां खबर नहीं खुद के ठिकानों का।
वो राह था साथ चलने वालों का, ये राह है छलने वालों का।
वो जमाना हो गया पुराना, शुरू यह एक नया सफर है ।
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