...

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इश्क और जमाना,,,,
कहीं के लिए भी घर से निकलना
और तेरी गली में मुड़ जाना
मेरे लिए अब कितना
सिमट गया है ये जमाना

तुझे ही बार बार लिखना और फिर
तुझे ही बार बार दोहराना
कितना खूबसूरत होता जा रहा है
मेरे इश्क का फंसाना

खुद ही आंखे मूंद लेंगे हम गर
कहीं और नजरें उठाएंगे
बा-जीचा-ए-अफताल नहीं
इश्क को निभाना

तू वादा शिकन,,,,,
तेरे लिए आसान है बहुत
जब मन करे आना,,,
जब मन करे छोड़ कर जाना
© char0302