...

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कश्मकश
कश्मकश राज से मेरे घर आये रियायत भी हो गई
सुरूर ऐसा रुस्वा भी ना हुआ और इशरत भी हो गई ,

उसने करीब आके इस कदर नजरे-करम मुझसेकी ,
तिश्नगीका नशा भी ना हुआ और उल्फत भी हो गई ,

मत पूछ उसका अंदाज दर्द देके चारागर बनना ,
तड़पना तड़पाना भी ना हुआ और सियासत भी हो गई ,

दीवानगी की इंतहा का मेरा खुदा कुछ और है ,
तलब से खफा भी ना हुआ और इज्जत भी हो गई ,

बेताब भी है और इश्क का दावा भी नहीं करते ,
गिला शिकवा भी ना हुआ और इनायत भी हो गई ,

जैसे मजार पे माथों का टेकना, उस तरह मुझे छूना ,
दिया मंदिरमें जलाना भी ना हुआ और इबादत भी हो गई

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