पर्यावरण पर कविता-छुईमुई
कविता-पर्यावरण पर कविता- छुईमुई
एक बार की बात
लगाया उस पौधे पर हाथ
लजाई दूल्हन मानो रात
पूछा कैसा शरम हयात
मैंने क्या कर दी तेरे साथ?
शहमी ठहरी थी कुछ देर
फिर वह हल्की भरी हिलोर
तन के खड़ी हुई भर जोर
तब वह बोली मीठी बोल,
मेरा छुईमुई पहचान
लाजवंती क्यों मेरा नाम?
नाम से लाजवंती बदनाम
ऐसा किया कौन सा काम
शर्माउं मैं सुबहो शाम,
कितने घने थे जंगल वन
बाग बगीचे खिले उपवन
भर जाता खुशियों से मन
सुन चिड़ियों के कलरव धुन,
मानव किया नदानी खूब
खुद खुशियों में रहा डूब
ना थकता न रहा ऊब
बंदर जैसा खुब रहा कूद
काट रहा है वन उपवन को
खतरे में डाल रहा जीवन को
रोके कौन धरा तपन को
प्यासे पक्षी पशु तड़पन को
न वर्षा का थोड़ा ध्यान
नहीं लगाता अपना ज्ञान
कहता धर्म और विज्ञान
पौधों में भी होता जान
मैं डरती हूं इंसानो से
मिट न जाऊं पहचानो से
मानव कृत्य कारनामों से
स्वारथ जैसे इमानो से
हाथ जोड़ विनती है एक
सांसों का जो रिश्ता नेक
मुझे काट के खुद का सोच
न प्राकृति के गति को रोक।
© Rambriksh Ambedkar Nagar
एक बार की बात
लगाया उस पौधे पर हाथ
लजाई दूल्हन मानो रात
पूछा कैसा शरम हयात
मैंने क्या कर दी तेरे साथ?
शहमी ठहरी थी कुछ देर
फिर वह हल्की भरी हिलोर
तन के खड़ी हुई भर जोर
तब वह बोली मीठी बोल,
मेरा छुईमुई पहचान
लाजवंती क्यों मेरा नाम?
नाम से लाजवंती बदनाम
ऐसा किया कौन सा काम
शर्माउं मैं सुबहो शाम,
कितने घने थे जंगल वन
बाग बगीचे खिले उपवन
भर जाता खुशियों से मन
सुन चिड़ियों के कलरव धुन,
मानव किया नदानी खूब
खुद खुशियों में रहा डूब
ना थकता न रहा ऊब
बंदर जैसा खुब रहा कूद
काट रहा है वन उपवन को
खतरे में डाल रहा जीवन को
रोके कौन धरा तपन को
प्यासे पक्षी पशु तड़पन को
न वर्षा का थोड़ा ध्यान
नहीं लगाता अपना ज्ञान
कहता धर्म और विज्ञान
पौधों में भी होता जान
मैं डरती हूं इंसानो से
मिट न जाऊं पहचानो से
मानव कृत्य कारनामों से
स्वारथ जैसे इमानो से
हाथ जोड़ विनती है एक
सांसों का जो रिश्ता नेक
मुझे काट के खुद का सोच
न प्राकृति के गति को रोक।
© Rambriksh Ambedkar Nagar
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