...

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विचार
जिस दिन स्वयं को यह लग गया न कि स्वयं को सब कुछ आता हैं, उस दिन के बाद अपनी सीखने की ललक, जिज्ञासा सब खत्म हो जाएगी, जिजीविषा ख़त्म होने के बाद, अपने ज्ञान में बजाय वृद्धि के,ज्ञान को जंग लगना प्रारंभ हो जाता हैं, कुछ ही समय बाद अपन दूसरों की तुलना में कमतर हो जाएंगे, इस प्रकार से कमतर होना हमे स्वीकार्य नहीं होगा, हम इसे स्वीकार भी नहीं करेंगे.. इससे अपनी सोच संकीर्ण हो जाएगी... संकीर्ण सोच के साथ हम छिद्रान्वेषी व्यवहार करने लगेंगे, अपनी पहचान व अस्तित्व पर संकट का साया देखकर हम औरों की लकीर छोटी करने का प्रयास करेंगे... ख़ुद के ज्ञान की लकीर तो बड़ी कर नहीं...