स्त्री
लम्हा लम्हा जीने की कोशिश की मैंने
पर हर बार टुकड़ों में बढ़ती गई मैं
एक स्त्री होने की ना जाने कैसी सजा पाई मैंने
कभी सीता...
पर हर बार टुकड़ों में बढ़ती गई मैं
एक स्त्री होने की ना जाने कैसी सजा पाई मैंने
कभी सीता...