...

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रात की छलनी से
रात की छलनी से चाँद चाँदनी छान रहा था
समूह तारों का हसीं समाँ का शामियाना तान रहा था
मैंने पूछा आज कोई उत्सव है क्या
आसमान पर खुशी का महोत्सव है क्या
चाँद मुझे देख बोला तुम आये हो ना
कह चाँद ने अमृत घोला
ए चाँद क्यूँ मज़ाक़ करते हो
तुम भी दुनिया की तरह टाँग खींचते हो
हँसकर चाँद कहने लगा सुनो हर रोज़
अँधेरा आता है यहीं आना उसको भाता है
तो मैंने सोचा कुछ चाँदनी बिखेरकर
उसकी राह रौशन कर दूँ
हम तो रहते हैं आसमान पर
क्यूँ ना ज़मीन को आसमान कर दूँ
NOOR EY ISHAL
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