...

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जो भूल गए
दूर होते गए रिस्ते, नाते, दोस्त, साथ देने वाले,
हम बस रह गए अपने सोच में डूबे हुए,
वक्त हमें कब पीछे छोड़ गया, पता न चला,
कलम से हमारी यारी जमाने को रास न आया,
पर हम तो लेखक ठहरे,
अल्फाजों को रंग रूप देने में मसरूफ हो गए,
खुद को भूल गए और जमाने को भी
© Dr. Jyoti Prakash Rath