गज़ल
हक़ीक़त में न सही तो तुम ख्यालो में आती रही,
सारे वायदों का ग़िला नही कुछ एक तो निभाती रही ।
मेरी रूह तक को रंग दिया है तुमने अपने रंग मे,
मेरे रंग को अपने चेहरे से ज़रा ज़रा मिटाती रही।
डर था मुझको भर न जाये ज़ख्म-ए-दिल मेरे कहीं,
रोज़ इनपर अपनी यादों का...
सारे वायदों का ग़िला नही कुछ एक तो निभाती रही ।
मेरी रूह तक को रंग दिया है तुमने अपने रंग मे,
मेरे रंग को अपने चेहरे से ज़रा ज़रा मिटाती रही।
डर था मुझको भर न जाये ज़ख्म-ए-दिल मेरे कहीं,
रोज़ इनपर अपनी यादों का...