सोच भी मौज भी - 1
दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल ।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ।।
यही आज के परिपेक्ष में
काव्य कटाक्ष के रूप में
दे दी हमें बरबादी बिना रोटी बिना दाल ।
गोबर मती अनंत तेरी नित नई हर चाल ।।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ।।
यही आज के परिपेक्ष में
काव्य कटाक्ष के रूप में
दे दी हमें बरबादी बिना रोटी बिना दाल ।
गोबर मती अनंत तेरी नित नई हर चाल ।।
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