...

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स्नेह!!
वो कैसा प्रेम जब सामने वाले की ,
जिससे आप स्नेह करते हैं
उसकी सोच का ,आन का आपको ध्यान ही न रहे,
आप उन्हें सम्मान ही न दो।
फिर मत कहिए अपने आपको प्रेमी।
आप कुछ भी हो सकते हैं मगर सच्चे प्रेमी नहीं।
आप अपनी इच्छाओं के लिए जी रहे हैं,
अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए
ना कि उसके लिए , जिसे अपना प्रिय बताते हैं।
क्योंकि स्नेह तो सम्मान , समर्पण
और त्याग से ही पूर्ण होता है।
भौतिक बिछोह तो
प्रेम की सबसे सुंदर सोपान है
जो आत्मा को उस परमात्मा की याद में
सदैव के लिए विलीन कर देती है।
वहीं तो है शुद्ध और पवित्र प्रेम
जहां प्रिय के न होने पर भी
आप सिर्फ उसी को ध्यान करते हैं,
बिन किसी गिला , बिना कोई शिकवा।
वो यादें आपको तरोताजा कर देती है ,
आपको थमाए जाती है सुकून भरी मुस्कान।
© दिव्य दीप