...

20 views

धारा
"धारा"

बहुत प्यारा सा शब्द है,
हवाओं का रूख जिधर,
बह चलती है बस उधर,
कब सोचा इसने अगले क्षण का,
कि टकराकर चट्टानों से
इसे बिखरना होगा,
या अपनी वर्तमान साथी से,
कभी बिछड़ना होगा,
कभी नहीं, कदापि नहीं,
इसे तो बस बहना है,
उन्मुक्त हो, अपने लिए,
हर हालात में मिल जाना है,
कभी शांत तो कभी उग्र
मगर थमना नहीं, रूकना नहीं,
अपने रास्ते अपनी गति से
तय करनी है,
असल में यही है जीवन,
क्योंकि कीचड़ तो कमल पर
पड़ता ही है, बावजूद इसके
वो कमलनयन पर चढ़ता ही है,
गुलाब काँटों में खिलता ही है,
बावजूद इसके सुगंध बिखेरता ही है,
सूरज एक वक्त बाद छिपता ही है,
बावजूद इसके सवेरा होता ही है,
इंसान जन्म ले मरता ही है,
बावजूद इसके वो जीता ही है,
सब तय है, फ़िर अफसोस किस बात का,
मुस्कुराइए और कहिए,

हाँ हमें ज़िंदगी से प्यार है,
उसके पहले हमें ख़ुद से प्यार है,
बाक़ी सब बाद में ❤️
© @Deeva