तुम क्या जानो
जो अश्रु न छलकाते हैं,
न नयनन नीर बहाते हैं,
न अपनी पीर दिखलाते हैं,
चित्त से ही स्नेह लगाते हैं।
तुम क्या जानो...
उस पिता की कथा को !
तुम क्या समझो....
एक पिता की व्यथा को !
जो सच कहना ही सिखलाते हैं,
न झुकना तुम...
न नयनन नीर बहाते हैं,
न अपनी पीर दिखलाते हैं,
चित्त से ही स्नेह लगाते हैं।
तुम क्या जानो...
उस पिता की कथा को !
तुम क्या समझो....
एक पिता की व्यथा को !
जो सच कहना ही सिखलाते हैं,
न झुकना तुम...