वक्त की रंजिश
हर कोशिशें नाकाम होने को बेताब,
खामोशियों की गिरफ्त में भी तूफान,
टूटकर कांच सा बिखरा हुआ फिर से,
गिरकर उठता हुआ हर दफा यह इंसान।
देह का सवाल, मन से होता हजारों बार,
आत्मा में मैला हुआ आखिर क्या समान,
खैर जिंदगी गुज़र गई होती अब तक,
यदि मौत न हुई होती इतनी बेईमान।
रुला देती है आंखे, या फिर मन भी रोता है,
आत्मा हर क्षण लेती रही इसी का संज्ञान।
छुब्ध...
खामोशियों की गिरफ्त में भी तूफान,
टूटकर कांच सा बिखरा हुआ फिर से,
गिरकर उठता हुआ हर दफा यह इंसान।
देह का सवाल, मन से होता हजारों बार,
आत्मा में मैला हुआ आखिर क्या समान,
खैर जिंदगी गुज़र गई होती अब तक,
यदि मौत न हुई होती इतनी बेईमान।
रुला देती है आंखे, या फिर मन भी रोता है,
आत्मा हर क्षण लेती रही इसी का संज्ञान।
छुब्ध...