इश्क़ है तुमसे मगर...
बा–दिले–जार हूं मैं
मोहब्बत में हार कर
जीते जी मरना
सीख ही लिया मैंने
दिल को मेरे अब और तू चाक ना कर
भरी बज्म में रुसवा किया है
दहान–ए–जख्म की बात ना कर
तुमसे ना उम्मीद हूं मैं अब
मुश्त–ए–ख़ाक...
मोहब्बत में हार कर
जीते जी मरना
सीख ही लिया मैंने
दिल को मेरे अब और तू चाक ना कर
भरी बज्म में रुसवा किया है
दहान–ए–जख्म की बात ना कर
तुमसे ना उम्मीद हूं मैं अब
मुश्त–ए–ख़ाक...